Monday 26 November 2012

धमाचौकड़ी का धमाचौकड़ी भरा सफ़र :)


सारा प्रोग्राम सेट था .. मुझे रात ८.३० की ट्रेन से लखनऊ के लिए रवाना होना था। ऑफिस में काफी काम था पर सब व्यवस्थित तौर पर पूरा हो गया और मैं समय से घर पहुँच के फिर स्टेशन के लिए निकला, ट्रेन टाइम पर थी और मैं अपनी सीट पर आराम से बैठ गया| 
अब सवाल ये है की मैं लखनऊ जा क्यूँ रहा था ??? अरे हम कुछ दोस्तों ने मिलकर "धमाचौकड़ी प्लान की थी, सारा प्रोग्राम फ़ोन पर ही सेट हुआ  कि क्या- क्या करना है कैसे कैसे करना है इत्यादि बस मुझे सुबह तक लखनऊ पहुँच जाना था। धमाचौकड़ी के बारे में आगे बताता हूँ वरना बाकी चीज़ें भूल जाऊंगा ।
हाँ तो मैं ट्रेन में आराम से बैठा आम तौर पर मुझे नींद का आभाव रहता है इसलिए अपने आस पास के माहौल को ताक-झांक रहा था, मैंने अमूमन पाया कि उस दिन काफी लोगों कि सीट अपग्रेड हुई थी तो माहौल गरम था कि सबको टीटी साहब का इंतज़ार था कि वो आकर मामला क्लियर करें, करीब १-२ घंटे बीत चुके थे पर मेरी सीट का कोई दूसरा दावेदार ना था इसलिए मैं आराम से सोने कि कोशिश कर रहा था३-३.५ घंटे बाद मैं नींद के काफी नज़दीक पहुँच चूका था तभी टीटी महोदय ने आकर मुझे जगा दिया। खैर सोया बड़ी मुश्किल से था पर उठ गया क्यूंकि टीटी नें बताया कि मेरा टिकेट भी अपग्रेड हुआ है और मुझे ऐ-१ कि सीट मिली है, मैंने आज से पहले ऐ-१ में सफ़र नहीं किया था इसलिए ख़ुशी-ख़ुशी उठ के अपनी नयी सीट कि तरफ बढ़ गया।


नींद का सफाया हो चुका था तो कुछ देर चहल कदमी करने लगा तो पता लगा कि ऐ-१ बोगी मैं १ बाथटब भी है और एक सुन्दर महिला उस के पास मैं बैठी हुई शायद उसको भर रही थी, मोहवश मैं भी उस और आकर्षित हो गया। पास जाकर पता चला कि कि उसके साथ एक नौजवान भी है जो उसकी गोद मैं शांत बैठा हुआ था, मैं अमूमन अपना कैमरा साथ रखता ही हूँ इसलिए मैंने फोटो खीचनी शुरू करदी, यह देखते ही वो महिला तैश में आ गई और पूछने लगी " क्या आप प्रेस से तालुख रखते हैं, अगर हाँ तो यह ज़रूर छापियेगा "।खैर लेन्से लगा के देखते ही सारा मामला क्लियर था कि उस महिला कि सीट बरसात के पानी से बाथटब बनी हुई थी और वोह महिला अपने ७-८ साल के बच्चे को गोद में लिए आसू बहा रही थी, खैर उसी बीच टीटी भी आ गए और उन मोहतरमा को सीट मिल गई। मैं भी अपनी सीट पर पहुँच गया और सोने कि कोशिश करने लगा पर मेरा नींद से बोलचाल कम सा है इसलिए काफी आवाज़ देने पर भी वो ना आई :( हाँ भूख ज़रूर महसूस होने लगी, माहौल से पता चला कि बरेली आने वाला है मैं वहां उतरा और बिस्कुट का पैकेट और चाए ली  कुछ भूख शांत हुई, मैं वापस सोने कि कोशिश करने लगा और शायद १-२ घंटे बाद सो भी गया ... पर जब आँख खुली तो मेरी आखें खुली कि खुली ही रह गई :O


हाँ जब आख खुली तो पता चला की मैं लखनऊ से २०० किलो मीटर आगे निकल आया हूँ और ट्रेन के लास्ट स्टेशन "प्रतापगढ़" पहुँच चुका हूँ .. मेरे होश फाकता हो गए ... अब क्या करूँ ... सवेरे के ९ बजने को थे। मोबाइल निकाल कर देखा तो स्विचऑफ था अब फ़ोन चार्ज करने के लिए तलाश जारी की ... जल्द ही एक चार्जिंग पॉइंट मिल गया :) थैंक्स तो रेलवेज। फ़ोन चार्जिंग पर लगा कर जैसे ही ओं किया तो देखा की सैकड़ो मिस कॉल्स पड़ी हुई हैं शायद तब तक कॉलस आती रही जब तक फ़ोन ऑफ नहीं हो गया फिर मैंने फ़ौरन माता जी को काल किया और बताया की मैं सोते हुए प्रतापगढ़ पहुँच गया हूँ ...इस बीच में मुझे पता चला की मेरी इस लापरवाही की वजह से पूरे घर में हडकंप मच गया था माता पिता जी महापरेशां थे , राजू भैया नें अपने मित्र (जो की रेलवेज में अच्छी पोस्ट पर हैं ) से कहकर मेरी लिए खोज कार्यवाही शुरू करा दी , संजू भाई खुद सेलफोने नेटवर्क से तालुख रखते हैं तो उन्होंने  लोकेशन पता लगनी चाही ...  पता चला की मेरा सेल फ़ोन अंतिम बार लखनऊ एरिया के १०० किलो मीटर की रेंज में  पाया गया था। काफी हडकंप मच चुका था पर मैंने फ़ोन करते ही माता को अपनी बातों से मना  लिया और विश्वास दिला दिया की कोई टेंशन की बात नहीं है मैं २-३ घंटे में लखनऊ पहुँच जाऊँगा।खैर अब मुझे धमाचौकड़ी की चिंता हुई .. तो तुरंत परमानन्द, अश्वनी और अंकुर से कांटेक्ट किया और बताया की की ऐसा सीन है अब क्या होगा तो उनलोगों नें कहा की तुम टेंशन न लो धमाचौकड़ी तो ज़रूर होगी ..मैं लेट लतीफ़ ही सही पहुँचने की कोशिश करूँ।

अब मुझे ये सोचना था की वापस कैसे जाऊं ... ३ घंटे बाद लखनऊ की एक पैसेंजर गाडी आएगी पर मैं ३ घंटे  इंतज़ार नहीं कर सकता था इसलिए बस स्टैंड जाने का तय किया।रेलवे स्टेशन से बस स्टैंड का रिक्शा किया और पान खाते हुए बस स्टैंड पहुंचा। बस स्टैंड पर भी निराशा ही हाथ लगी लखनऊ के लिए कोई भी बस नहीं थी एक खटारा खड़ी थी जो आधे घंटे बाद रेंगना शुरू करेगी और ४-५  घंटे में लखनऊ पहुंचाएगी , मेरा दिल खट्टा हो गया , पर मैंने हार नहीं मानी, मुझे हर हाल में धमाचौकड़ी मचनी ही थी।


मुझे रास्ते में एक टैक्सी की शॉप दिखी थी मैं वापस वहां पहुंचा और यहाँ भगवान् ने मेरा साथ दिया मुझे लखनऊ के लिए टैक्सी मिल गए, वहां अंकुर का दोस्त भी मिल गया जिसको अंकुर नें मेरी हेल्प के लिए भेजा था, पैसे वैसे की बात हुई और मैं लखनऊ के लिए रवाना हो गया। :)
प्रदीप गाड़ी चालक था , प्रदीप बोला " भैया आप चिंता मत करो मैं आपको २.३० घंटे में लखनऊ पहुंचा दूंगा" मौसम भी सुहाना था तो मुझे लगा " जो भी होता है अछे के लिए ही होता है" मैं  मेरा कैमरा और देसी रोमांटिक सोंग्स के साथ हमारा सफ़र मस्त मजे में शुरू हो गया.

लोगों को लग रहा था कि मैं बहुत परेशां हो रहा हूँ पर सच कहू मैं उस सफ़र को बहुत एन्जॉय कर रहा था। पर जैसे हर सिक्के के दो पहलु होते हैं वैसे ही इस अछे सुहाने मौसम से प्रॉब्लम होनी भी लाज़मी थी, घनघोर हवा और बारिश कि वजह से रास्ते में पेड़ टूट गए थे और मस्त ट्राफिक जाम हो गया था ...जिसकी वजह से मैं १ घंटे और लेट होने वाला था। और दूसरी चीज़ घनघोर बारिश कि वजह से धमाचौकड़ी का प्रोग्राम भी अधर में फास गया था। 


परन्तु इन सब व्यवधानों को पार करते हुए  परमानन्द , अश्वनी , अंकुर , चाहत , गौरव , शिवांक और आप सब के आशीर्वाद से धमाचौकड़ी शुरू हो ही गई .. उस तरफ मेरी गाडी भी जाम से आगे निकल चुकी थी और कुछ देर में मैं भी धमाचौकड़ी स्थल ग्राम भीलमपुर पहुँच गया।

चलिए अब बिना देर किये हुए आपको धमाचौकड़ी में ले चलते है 


आशा करता हूँ कि अब आपको समझ आ गया होगा कि हमारा धमाचौकड़ी का क्या प्रोग्राम था .....कहिये कैसा लगी ये धमाचौकड़ी 
lucknow meri jaan